क्षेत्र के विकास के लिये साईकिल यात्रा पर निकले पूर्व निगम पार्षद 14 बार साईकिल पर आ चुके है मध्यप्रदेश से दिल्ली

निर्भय कुमार नई दिल्ली
एक व्यक्ति पन्ना लाल कोरी, जो अपने वार्ड में अच्छे दिन लाने की चाहत लिए देश के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से मिलने के लिए टूटी सफेद, केसरिया और हरा तिरंगा साइकिल से सरिता विहार से गुजरते हुए दिखे। कहते हैं ना पत्रकार स्टोरी को लपकने के लिए हमेशा तैयार रहता है। हुआ भी कुछ ऐसा ही। मैंने अपनी स्कूटी सड़क किनारे रुकी और उस शख्स को रुकने का इशारा किया। मुझे देख वह सहसा रुक गए। पूछा कौन हो आप। मैंने बताया पत्रकार हूं। वह झट से साइकिल को सड़क पर लगाया और मेरी पास आकर रुक गए। मैंने पूछा आप कौन हैं। उन्होंने बताया कि वह पूर्व निगम पार्षद हैं और मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के सबलगढ़ से आ रहे हैं। वह अपने क्षेत्र के विकास के लिए दिल्ली आए हैं।
फिर क्या था उन्होंने अपनी साइकिल पर कपड़ों की गठरी खोली और एक के बाद एक दर्जन भर से अधिक दस्तावेज निकाल कर मेरे सामने रख दिया। चूंकि मैं नोटिस पीरियड में दफ्तर जा रहा था। इस कारण देरी से पहुंचने का डर न के बराबर मेरे दिमाग में घूम रहा था। फट से मैंने डायरी और पेन निकाला और लग गया लिखने। तब पूर्व बुजुर्ग पार्षद को लगा कि मैं उनकी कुछ मदद कर सकता हूँ। फिर क्या था। उन्होंने बताना शुरू किया और मैंने लिखना। उन्होंने बताया कि प्रति वर्ष अपने पैतृक गांव से दिल्ली तक का सफर साइकिल से करते हैं। रास्ते में मंदिर को रात में अपना ठिकाना बनाते हैं। जो कुछ पुजारी खाने को दे देता है वह खाकर सो जाते हैं। अगले दिन फिर दिल्ली तक कि दौड़ अपनी साइकिल से शुरू कर देते हैं।
वर्ष 1991 से 14 बार वह दिल्ली आ चुके हैं। पर वह अपनी मांगों से सबंधित ज्ञापन सौंप नहीं सके है। भले ही शरीर जवाब देने लगा हो पर उनका हौसला अब भी बुलंद है। मैं भी पत्रकार ठहरा सोचा कुछ और गड़े मुर्दे उखाडूंगा तो कुछ और रोचक जानकारी मिलेगी पर जो बातें उन्होंने बताई झकझोर कर रखने वाली थी। पहली उन्होंने बताई कि तीन बार निगम पार्षद का चुनाव जीत कर हैट्रिक लगा चुके हैं। एक बार उनकी पत्नी भी विजय हो चुकी है। पर कहते हैं ना कि आज के दौर में जो ईमानदार होता है। उसे कुछ समय बाद दो जून की रोटी भी नसीब नहीं होती। कुछ ऐसा ही हाल पन्ना लाल कोरी का है। जीवनयापन के लिए मजदूरी करते हैं।पत्नी लोगों के घरों में काम करती है। दो बेटे हैं वे भी कृषि उपज मंडी में मजदूरी कर अपने परिवार का भरणपोषण करते हैं।
उन्होंने कहा कि उन्हें यह मलाल नहीं कि आज उन्हें मजूदरी करना पड़ रहा है। मलाल तो केवल इस बात का है कि उनकी मांग देश के कर्ताधर्ता तक नहीं पहुंचाई जा रही है। हालाकिं उन्हें देश के पीएम नरेंद्र मोदी से काफी उम्मीद है। अंत मे पन्ना लाल कोरी की कही हुई एक बात पूरे दिन भर मुझे कचोटती रही कि अब आमजन चुनाव में नहीं जीत सकता। देश मे एक वो भी दौर था जब निगम पार्षद का चुनाव मात्र 500 रुपये खर्च कर जीत गए थे, लेकिन आप लाखों खर्च करने के बाद भी प्रत्याशी हर जाते हैं। अब के निगम पार्षद एक साल में ही बाइक छोड़ महंगी एसयूवी कार में नजर आने गलते हैं। अब चुनाव को लोग निवेश का माध्यम मानने लगे हैं। सौ लगने पर हजार कमाने की इच्छा रखते हैं। यही कारण है कि अब उन जैसे राजनेता बिरले ही बचे हैं जो तीन बार निगम पार्षद रहने के बाद भी अंतिम दिनों में मजदूरी करने को मजबूर हैं।

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