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छोटे दलों पर BJP-कांग्रेस की नज़र

Congress-and-BJP
नई दिल्ली, निर्भय शक्ति पाण्डेय

पिछले ढाई दशक से गठबंधन की राजनीति अनिवार्य हो जाने के बाद देश में करीब दो दजर्न ऐसे राजनीतिक दल भी फल फूल रहे हैं, जो किसी की भी सरकार बनवा सकते हैं और गिरा भी सकते हैं। इसी लोकसभा में इन क्षेत्रीय दलों के पास 145 सदस्य थे और जिस तरह का माहौल है उसमें इनकी संख्या कम होने के आसार नहीं हैं।
यूपी में सपा, बसपा, रालोद। बिहार में जनता दल (यू), पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस, ओड़िशा में बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश में तेलुगू देशम पार्टी तथा वाईएसआर कांग्रेस जैसे क्षेत्रीय दल लगभग हर राज्य में हैं। कांग्रेस तथा भाजपा जैसे राष्ट्रीय दल इन्हें कमतर आंकने का जोखिम लेने की स्थिति में नहीं हैं। इनमें से कुछ एक दलों को छोड़ राष्ट्रीय दल चुनाव बाद समर्थन के लिए किसी पर पूरा भरोसा भी नहीं कर सकते। कुछ दलों ने हवा का रुख भांप अपने पत्ते खोलने शुरू किए हैं, लेकिन ज्यादातर चुनाव बाद ही अपनी स्थिति स्पष्ट करेंगे।
चुनाव बाद समर्थन के लिए जिन दलों पर दोनों ही राष्ट्रीय दलों की नजरें लगी हुई हैं उनमें बसपा, जेडीयू, द्रमुक, अन्नाद्रमुक, बीजेडी, तेलुगू देशम, झारखंड मुक्ति मोर्चा, पीडीपी से लेकर वाईएसआर कांग्रेस और झारखंड विकास मोर्चा तक सभी शामिल हैं।
नेशनल कांफ्रेंस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और राष्ट्रीय लोकदल जैसी पार्टियां फिलहाल कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा हैं। लेकिन कांग्रेस के नेता भी मानते हैं कि चुनाव बाद यदि भाजपा को सरकार बनाने का मौका मिलता है तो इन दलों को फैसला करने में दो मिनट भी नहीं लगेंगे। बिहार में रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने हवा का रुख देख सबसे पहले फैसला किया। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित होने के बाद यूपीए के पाले से छिटकने वाले वह पहले क्षेत्रीय दल थे। सूत्र मान रहे हैं कि राजनीतिक माहौल में और स्पष्टता आने के बाद आने वाले दिनों में तेलुगू देशम, अन्नाद्रमुक, नेशनल कांफ्रेंस, असम गण परिषद जैसे दल भी चुनाव से पहले फैसला कर सकते हैं।

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