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हिन्दी का इस्तेमाल केवल हिन्दी भाषी राज्यों के लिए

नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सरकारी विभागों और सोशल साइट्स पर सरकारी कामकाज में हिंदी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के आदेश दिए हैं। लेकिन इस फैसले पर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता और डीएमके अध्यक्ष एम करुणानिधि नाराज हो गए हैं।

1960 के दशक में तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ आंदोलन चला चुके करुणानिधि ने इसे हिंदी थोपे जाने की शुरुआत करार दिया। वहीं जयललिता ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखकर गृह मंत्रालय के हिंदी इस्तेमाल करने के आदेश पर आपत्ति जताई है। राज्य में एनडीए की सहयोगी पीएमके और जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने भी केंद्र सरकार की ऐसी कोशिशों का विरोध किया है। वहीं विवाद बढ़ता देख सरकार की ओर से भी सफाई दी गई। बीच राजभाषा ने हिंदी के इस्तेमाल पर जारी किए निर्देश की चिट्ठी फिर जारी की है।

भारत सरकार के राजभाषा विभाग ने जो चिट्ठी जारी की है, उसमें लिखा है कि भारत सरकार के सभी मंत्रालयों, विभागों, संबद्ध कार्यालयों, अधीनस्थ कार्यालयों, उपक्रमों, निगमों, बैंकों और उनके अधिकारियों, तथा कर्मचारियों द्वारा ट्विटर, फेसबुक, ब्लॉग, गूगल, यू ट्यूब आदि जैसे सामाजिक माध्यमों पर बनाए गए आधिकारिक खातों में राजभाषा हिंदी अथवा अंग्रेजी और हिंदी दोनों का द्विभाषी रूप से प्रयोग किया जाए, जिसमें हिंदी को ऊपर/पहले रखा जाए।

जयललिता ने केंद्र के इस आदेश के खिलाफ पीएम नरेंद्र मोदी को लिखी चिट्ठी में कहा है कि सोशल मीडिया पर आधिकारिक संवाद की भाषा हिंदी की बजाय अंग्रेजी ही होनी चाहिए। पीएमके ने भी गृह मंत्रालय के हिंदी को जरूरी बताने वाले नोट की खिलाफत की है। पार्टी के संस्थापक रामदौस ने कहा कि हिंदी थोपी नहीं जानी चाहिए और सभी 22 भाषाएं आधिकारिक भाषाएं घोषित की जानी चाहिए।

जम्मू कश्मीर के मुख्ममंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि उर्दू और अंग्रेजी जम्मू कश्मीर की आधिकारिक भाषाएं हैं। इसके अलावा जिसको जो भाषा उपयोग करना है, वो करे। किसी पर कोई भाषा थोपी नहीं जा सकती। बीसपी सुप्रीमो मायावती ने कहा कि हिंदी को बढ़ावा देना अच्छी बात है लेकिन हमें अपने देश की समृद्ध विरासत और विविधता को भूलना नहीं चाहिए।

इससे पहले कल डीएमके चीफ एम करुणानिधि ने सोशल मीडिया पर आधिकारिक संवाद हिंदी में करने के गृहमंत्रालय के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि कोई भी इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि ये किसी की इच्छा के विरुद्ध उसपर हिंदी थोपने की शुरुआत है। इसे गैर हिंदी भाषियों को दोयम दर्जे के नागरिक समझने की कोशिश के तौर पर देखा जाएगा।

करुणानिधि ने कहा कि मोदी के सभी शुभचिंतक चाहते हैं कि वो आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए काम करें। इतिहास भाषा की लड़ाई और हिंदी विरोधी आंदोलन का गवाह है। क्या हम नेहरू के उस आश्वासन को भूल सकते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि अंग्रेजी तब तक आधिकारिक भाषा रहेगी, जब तक गैरहिंदी भाषी चाहेंगे।

मामले को बढ़ता देख बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि हम अंग्रेजी का सम्मान करते हैं और अंग्रेजी में कामकाज में कुछ भी गलत नहीं है लेकिन हिंदी के साथ भेदभाव खत्म होना चाहिए। हिंदी को प्रमोट करने के लिए कई कमेटियां हैं, हिंदी पखवाड़ा हम देख चुके हैं लेकिन इसके बावजूद हिंदी कहां हैं। ये सब औपचारिकताएं बनकर रह गई हैं। नए कदमों की वजह से हिंदी बोलने वाले लोगों का आत्मविश्वास बढ़ेगा। नकवी ने कहा कि ये किस भी भाषा पर हमला नहीं हैं।

 

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