नई दिल्ली,एजेंसी । सरकार के हिंदी प्रेम से एक बार फिर भाषायी विवाद खड़ा होने की आशंका पैदा हो गई है। विवाद की शुरुआत सोशल मीडिया पर सरकारी संवाद की भाषा के रूप में हिंदी के इस्तेमाल को प्राथमिकता देने के दिशा-निर्देश के बाद हुई है। हालांकि चौतरफा आलोचना और विवाद भड़कने के मद्देनजर सरकार ने शुक्रवार को स्पष्ट कर दिया कि सोशल मीडिया पर हिंदी का उपयोग केवल इस भाषा को बोलने वाले राज्यों के लिए होगा और इसे गैर हिंदी भाषी राज्यों पर थोपा नहीं जाएगा।
कांग्रेस ने शुक्रवार को जहां सरकार को सोशल मीडिया में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के उसके फैसले में सावधानी बरतने की सलाह दी, वहीं द्रमुक अध्यक्ष एम करुणानिधि ने इस कदम को साफ-साफ हिंदी थोपने की शुरुआत करार दिया है। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने इसके विरोध में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। राज्य में भाजपा के दो सहयोगियों ने भी इसका विरोध किया है और माकपा ने सरकार से इस नीति में बदलाव की मांग की है। भाजपा भी केंद्र सरकार की पहल का बचाव करती दिखाई दे रही है। उसने स्पष्ट किया है कि हिंदी को प्राथमिकता और प्रोत्साहन देने का यह अर्थ कतई नहीं है कि अंग्रेजी या किसी और भाषा को अलग-थलग किया जा रहा है। सरकार ने शुक्रवार को कहा कि सोशल मीडिया पर हिंदी का उपयोग केवल इस भाषा को बोलने वाले राज्यों के लिए होगा और इसे गैर हिंदी भाषी राज्यों पर थोपा नहीं जाएगा। एक सरकारी प्रवक्ता ने बताया कि भारत सरकार के सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हिंदी का इस्तेमाल केवल हिंदी भाषी राज्यों के लिए है। इसे गैर हिंदीभाषी राज्यों पर थोपा नहीं जा रहा है। आधिकारिक सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर हिंदी के बारे में मौजूदा नीति को फिर से बताया गया है।
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता पी चिदंबरम ने यहां कांग्रेस मुख्यालय में पत्रकारों से कहा कि गैर हिंदीभाषी राज्यों खासकर तमिलनाडु में प्रतिक्रिया हुई है। सरकार को सावधानी के साथ आगे बढ़ना होगा। भाजपा ने सरकारी कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता देने की केंद्र सरकार की पहल का बचाव करने का प्रयास करते हुए कहा है कि हिंदी को प्राथमिकता और प्रोत्साहन देने का यह अर्थ कतई नहीं है कि अंग्रेजी या किसी और भाषा को अलग-थलग किया जा रहा है। हिंदी भाषा देश की आत्मा और क्षेत्रीय भाषाओं व संस्कृति का मिश्रण है। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने हालांकि इस विवाद को तवज्जो न देने का प्रयास करते हुए गुरुवार को कहा था कि केंद्र सरकार देश की सभी भाषाओं को बढ़ावा देगी।
द्रमुक अध्यक्ष एम करुणानिधि ने इस कदम को हिंदी थोपने की शुरुआत करार दिया है। द्रमुक ने 1960 के दशक में हिंदी विरोधी आंदोलन का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया था। नब्बे साल के द्रमुक नेता ने कहा कि हिंदी को संविधान की आठवीं सूची में शामिल दूसरी भाषाओं से अधिक प्राथमिकता क्यों दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि हिंदी को प्राथमिकता देने से माना जाएगा कि गैर हिंदीभाषी लोगों के बीच भेद कायम करने और उन्हें दूसरे दर्जे का नागरिक बनाने की दिशा में यह पहला कदम है।