प्राकृतिकरूप से परस्पर जुडे दो रूद्राक्षो को गौरी शंकर रूद्राक्ष कहा जाताहै। गौरी शकंर रूद्राक्ष को भगवान शिव तथा माता गौरी का रूप माना जाता है।इसको धारण करने से भगवान शिव तथा माता गौरी दोनो सामान रूप से प्रसन्न होतेहै। यह हर प्रकार की सिद्धियों व मोक्ष का दाता है। यह रूद्राक्ष मानवको हर प्रकार के रूद्राक्षों से होने वाले लाभ को अकेले ही दिलवाता है।इसको धारण करने के लिए इसे सोने या चांदी में मढवा लेना श्रेष्ठ है। घर यादुकान में इसे पूजा या धन स्थान में स्थापित कर नित्य पाठ पूजा करने से देवीलक्ष्मी का वहां पर स्थाई वास हो जाता है। यह परिवारिक शांति के लिए खासकरजिस दाम्पात्य जीवन में कलह हो या जिन की जन्म कुन्डली में पति पत्नी कामिलान शुभ न हो उन दोनो को यह रूद्राक्ष धारण करना चाहिए। इस से पति पत्नीके आपसी प्रेम में वृद्धि होती है। स्वास्थय, आयु, वृद्धि ,कम्पीटिशन, सफलताकी प्राप्ती व सैक्स से सम्बन्धित दोषों को दूर करता है। यहरूद्राक्ष एक मुखी रूद्राक्ष की भांति धर्म, अर्थ, काम वमोक्ष प्रदान करने वाला है। यदि किसी भी प्रकार की संतान बाधा हो तो जैसेविवाह के काफी वर्ष बीत जाने पर भी सन्तान न होना, सन्तानहोकर मर जाना, बार बार गर्भपात होना तो ऐसे में उस औरतको चाहिए कि गौरी शंकर रूद्राक्ष को मन्त्रों से सिद्धकर शुभ महुर्त में पहने। श्री गौरी शकंर रूद्राक्ष को सोमवार के दिन या किसी शुभमहुर्त में विधिपूर्वक प्रातः काल स्नान के बाद ऊं गौरीशंकराय नम:मंत्र का जाप करके काले धागे में गूथंकर यथाविधि धारण करना चाहिए। साथ हीप्रतिदिन एक बार यह मंत्र अवश्य जपें।