भारतीय वैदिकज्योतिष के अनुसार सूर्य को समस्त ग्रहों का राजा माना जाता है और इसे समस्त प्राणी जगत को जीवन प्रदान करने वालीउर्जा का केंद्र भी माना जाता है। सूर्य कोज्योतिष की गणनाओं के लिए पुरुष ग्रह माना जाता है। प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में सूर्य को आम तौर पर उसकेपिता का प्रतिनिधि माना जाता है जो उसव्यक्ति के इस प्राणी जगत में जन्म लेने का प्रत्यक्षकारक होता है ठीक उसी प्रकार जैसे सूर्य को इस प्राणी जगत को चलाने वाले प्रत्यक्ष देवता का रुप माना जाता है। कुंडली मेंसूर्य को कुंडली धारक के पूर्वजों काप्रतिनिधि भी माना जाता है क्योंकि वे कुंडली धारक के पिता के इस संसार में आने का प्रत्यक्ष कारक होतेहैं। इस कारण से सूर्य पर किसी भी कुंडली मेंएक या एक से अधिक बुरे ग्रहों का प्रभाव होने पर उस कुंडली में पितृ दोष का निर्माण हो जाता है जो कुंडलीधारक के जीवन में विभिन्न प्रकार कीमुसीबतें तथा समस्याएं पैदा करने में सक्षम होता है।
पिता तथा पूर्वजोंके अतिरिक्त सूर्य को राजाओं, राज्यों, प्रदेशों तथा देशों के प्रमुखों, उच्च पदों पर आसीन सरकारी अधिकारियों, सरकार, ताकतवर राजनीतिज्ञों तथा पुलिस अधिकारीयों, चिकित्सकों तथा ऐसे कई अन्य व्यक्तियों और संस्थाओं का प्रतिनिधि भी माना जाता है। सूर्य को प्रत्येकव्यक्ति की आत्मा का, जीवन दायिनी शक्ति का,इच्छा शक्ति का, रोगों से लड़ने की शक्ति का, आँखों की रोशनी का, संतान पैदा करने की शक्ति का तथा विशेष रूप से नर संतान पैदा करने की शक्ति का, नेतृत्वकरने की क्षमता का तथा अधिकार एवम नियंत्रण की शक्ति का प्रतीकभी माना जाता है।
व्यक्ति के शरीरमें सूर्य पित्त प्रवृति का प्रतिनिधित्व करते हैं क्योंकि सूर्य ग्रह के स्वभाव तथा अधिकार में अग्नि तत्व होताहै। बारह राशियों में सूर्य अग्नि राशियों(मेष, सिंह तथा धनु) में स्थित होकर विशेष रूप से बलवान हो जाते हैं तथा मेष राशि में स्थित होने सेसूर्य को सर्वाधिक बल प्राप्त होता है और इसीकारण इस राशि में सूर्य को उच्च कामाना जाता है।मेष राशि के अतिरिक्त सूर्य सिंह राशि में स्थित होकर भी बली हो जाते हैं जो कि सूर्य की अपनी राशि है तथा इसके अतिरिक्तसूर्य धनु राशि में भी बलवान होते हैं जिसकेस्वामी गुरू हैं। जिन व्यक्तियों की जन्म कुंडलीमें सूर्य बलवान तथा किसी भी बुरे ग्रह के प्रभाव से रहित होकर स्थित होते हैं ऐसे कुंडली धारक आम तौर पर जीवन भर सवस्थ रहतेहैं क्योंकि सूर्य को सीधे तौर पर व्यक्ति केनिरोग रहने की क्षमता का प्रतीक माना जाता है।
कुंडली में सूर्यबलवान होने से कुंडली धारक की रोग निरोधक क्षमता सामान्य से अधिक होती है तथा इसी कारण उसे आसानी से कोई रोगपरेशान नहीं कर पाता। ऐसे व्यक्तियों काहृदय बहुत अच्छी तरह से काम करता है जिससे इनके शरीर में रक्त का सचार बड़े सुचारू रूप से होता है। ऐसे लोगशारीरिक तौर पर बहुत चुस्त-दुरुस्त होते हैंतथा आम तौर पर इनके शरीर का वजन भी सामान्य सेबहुत अधिक या बहुत कम नहीं होता हालांकि इनमें से कुछ तथ्य कुंडली में दूसरे ग्रहों की शुभ या अशुभ स्थिति के साथ बदल भी सकते हैं।कुंडली में सूर्य के बलवान होने पर कुंडली धारकसामान्यतया समाज में विशेष प्रभाव रखने वालाहोता है तथा अपनी संवेदनाओं और भावनाओं पर भली भांति अंकुश लगाने में सक्षम होता है। इस प्रकार के लोग आम तौर पर अपने जीवन केअधिकतर निर्णय तथ्यों के आधार पर ही लेतेहैं न कि भावनाओं के आधार पर। ऐसे लोगसामान्यतयाअपने निर्णय पर अडि़ग रहते हैं तथा इस कारण इनके आस-पास के लोग इन्हें कई बार अभिमानी भी समझ लेते हैं जो कि ये कई बार हो भीसकते हैं किन्तु अधिकतर मौकों पर ऐसे लोग तर्कके आधार पर लिए गए सही निर्णय की पालना ही कर रहे होते हैंतथा इनके अधिक कठोर लगने के कारण इनके आस-पास के लोग इन्हें अभिमानी समझ लेते हैं। अपने इन गुणों के कारण ऐसेलोगों में बहुत अच्छे नेता, राजा तथा न्यायाधीश बनने की क्षमता होती है।
पुरुषों की कुंडलीमें सूर्य का बलवान होना तथा किसी बुरे ग्रह से रहित होना उन्हें सवस्थ तथा बुद्धिमान संतान पैदा करने की क्षमताप्रदान करता है तथा विशेष रुप से नर संतान पैदाकरनी की क्षमता। बलवान सूर्य वाले कुंडली धारकआम तौर पर बहुत सी जिम्मेदारियों को उठाने वाले तथा उन्हें निभाने वाले होते हैं जिसके कारण आवश्यकता से अधिक काम करने के कारणकई बार इन्हें शारीरिक अथवा मानसिक तनाव कासामना भी करना पड़ता है। ऐसे लोग आम तौर पर पेटमें वायु विकार जैसी समस्याओं तथा त्वचा के रोगों से पीडि़त हो सकते हैं जिसका कारण सूर्य का अग्नि स्वभाव होता है जिससे पेट मेंकुछ विशेष प्रकार के विकार तथा रक्त में अग्नितत्व की मात्रा बढ़ जाने से त्वचा सेसंबधित रोग भीहो सकते हैं।
बारह राशियों में सेकुछ राशियों में सूर्य का बल सामान्य से कम हो जाता है तथा यह बल सूर्य के तुला राशि में स्थित होने पर सबसे कमहो जाता है। इसी कारण सूर्य को तुला राशि मेंस्थित होने पर नीच माना जाता है क्योंकि तुलाराशि में स्थित होने पर सूर्य अति बलहीन हो जाते हैं। इसके अतिरिक्त सूर्य कुंडली में अपनी स्थिति के कारण तथा एक या एक से अधिकबुरे ग्रहों के प्रभाव में आने के कारण भीबलहीन हो जाते हैं तथा इनमें से अंतिम प्रकार की बलहीनता कुंडली धारक के लिए सबसे अधिक नुकसानदायक होती है।किसी कुंडली में यदि सूर्य तुला राशि में स्थितहों तथा तुला राशि में ही स्थित अशुभशनि के प्रभावमें हों तो ऐसी हालत में सूर्य को भारी दोष लगता है क्योंकि तुला राशि में स्थित होने के कारण सूर्य पहले ही बलहीन होजाते हैं तथा दूसरी तरफ तुला राशि मेंस्थित होने पर शनि को सर्वाधिक बल प्राप्त होता है क्योंकि तुला राशि में स्थित शनि उच्च के हो जाते हैं। ऐसीहालत में पहले से ही बलहीन सूर्य पर पूर्णरूप से बली शनि ग्रह का अशुभ प्रभाव सूर्य को बुरी तरह से दूषित तथा बलहीन कर देता है जिससे कुंडली मेंभयंकर पितृ दोष का निर्माण हो जाता है जिसकेकारण कुंडली धारक के जीवन में सूर्य के प्रतिनिधित्वमें आने वाले सामान्य तथा विशेष, सभी क्षेत्रों पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इस लिए किसी भी व्यक्ति की कुंडली का अध्ययन करतेसमय कुंडली में सूर्य की स्थिति, बल तथा कुंडली के दूसरे शुभ तथा अशुभ ग्रहों के सूर्य पर प्रभाव को ध्यानपूर्वक देखना अति आवश्यक है।