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राजेश कैदी नंबर 9342 और नूपुर कैदी नंबर 9343

 

गाजियाबाद, तेजिंदर सिंह,
देश कि सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री जिसने सबको हैरान कर रखा था ,जिसमे न तो कोई सीधे सबूत ही थे और न गवाह ।आखिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा? पुलिस ,सी बी आई की तफ्तीश हुई, अदालत में तारीखें लगी साल दर साल बीतते गए और आखिर में फैसला आया और कातिल निकले आरुषि के माता-पिता। मंगलवार को कोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुना दी।

आरुषि-हेमराज हत्याकांड में विशेष सीबीआई कोर्ट ने मंगलवार को तलवार दंपति को उम्रकैद की सजा सुनाई। कोर्ट ने एक दिन पहले ही राजेश और नूपुर तलवार को दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराया था।
सीबीआई और बचाव पक्ष के बीच सजा पर बहस शाम 4.20 बजे शुरू होकर सिर्फ पांच मिनट चली। इसके बाद विशेष सीबीआई जज श्याम लाल ने कार्यवाही स्थगित कर दी। उन्होंने शाम साढ़े चार बजे तलवार दंपति को सजा सुना दी। इस दौरान राजेश और नूपुर तलवार शांत दिखे।

सीबीआई के वकील आरके सैनी ने सजा पर बहस करते हुए कहा कि इस मामले में चार लोग फ्लैट के भीतर थे, जिनमें से दो की हत्या कर दी गई। दो जिंदा बच गए। इस वारदात में पहले हत्या के लिए गोल्फ स्टिक का इस्तेमाल किया गया और उसके बाद बेरहमी से दोनों का गला रेत दिया गया। किसी के बाहर से आने व जाने का कोई सबूत नहीं मिला है। इससे साफ है कि आरुषि व हेमराज की हत्या डॉ. राजेश व डॉ. नूपुर तलवार ने की है।

बचाव पक्ष के वकील तनवीर अहमद मीर ने कोर्ट में सजा पर बहस के दौरान कहा कि वारदात में परिस्थितिजन्य साक्ष्यों को आधार माना गया है। उनके मुव्वकिलों के खिलाफ सीधे हत्या का कोई सबूत नहीं पाया गया है। उनका कोई आपराधिक इतिहास भी नहीं है। दोनों पेशे से प्रतिष्ठित डॉक्टर हैं। इसलिए कम से कम सजा दी जाए।

फैसले के बाद तलवार दंपति को डासना जेल भेजा गया। राजेश को बैरक-11 में कैदी नंबर 9342 और नूपुर को बैरक-13 में कैदी नंबर 9343 बनाया गया।

दोहरा हत्याकांड  जिसने साढ़े पांच साल पूरे देश को हैरान रखा। न सीधे सबूत थे और न ही गवाह। फिर आरुषि और हेमराज को किसने मारा? तफ्तीश हुई, अदालत में तर्क-वितर्क की तलवारें चलीं। आखिर फैसला आया और कातिल निकले बच्ची के माता-पिता। मंगलवार को कोर्ट ने दोनों को उम्रकैद की सजा सुना दी।

सीबीआई कि विशेष अदालत ने मंगलवार को तलवार दंपति को उम्रकैद की सजा सुनाई। कोर्ट ने एक दिन पहले ही राजेश और नूपुर तलवार को दोहरे हत्याकांड में दोषी ठहराया था।
उम्रकैद के तहत सभी मामलों में भारतीय दंड संहिता की धारा 57 के मुताबिक 20 साल की सजा होती है

14 साल की सजा पूरी होने से पहले माफी नहीं मिल सकती, बशर्ते राष्ट्रपति अपने अधिकार का इस्तेमाल न करें
यहां से माफ हो सकती है सजा
राज्य सरकार
धारा 433 के मुताबिक 14 साल बाद सजा माफ कर सकती है
राज्यपाल
भारतीय दंड संहिता के अनुच्छेद 161 के अनुसार 14 साल बाद सजा माफ कर सकते हैं
राष्ट्रपति
किसी भी वक्त सजा खत्म, कम या निलंबित कर सकते हैं। 14 साल सजा की बंदिश लागू नहीं होती

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