वास्तु

एक धार्मिक कथा अनुसार पूर्व काल में  अंधक दैत्य के घोर वध के समय महादेव जी के माथे से जो पसीने का जल निकला वो विकराल मुख वाला भनक शरीर युक्त सप्तदीपों व पृथ्वी कोग्रास करने वाला शिव के गण अन्धक दैत्य के खून को पीता हुआ यह गण विकरालशरीर धारण करता गया और त्रिलोक कोग्रास करने के लिए उसने शिव को प्रसन्न कर वर मांग लिया ,भोले ने भी भोले पन में वर दे दिया बस क्या था के हर तरफहाहाकार होने लगी सभी देवता घबराकर इकठे हो गये इकट्ठे हो कर उन्होंने इसेओंधे मुँह धरती पर लिटा दिया और उस के शरीर पर वास कर लिया उस गण ने शिव सेकहा कि मैं कहाँ वास करूँ तब देवताओ ने कहा देव कर्म के अंत में जो बलिदी जाएगी वो तुम्हारा आहार होगा किसी भी तरह का भवन बनने पर तुम्हारीपूजा व दिशाओं का ध्यान किया जाएगा जो तुम्हारे अनुरूप भवन नहीं बनाएगा वो उसभवन का पूर्ण सुख नही ले पायगा

अक्सर लोग ये कहतेहैं कि हमारा भवन वास्तु अनुरूप नहीं फिर भी हम सुखीहैं और कई कहते हैं हमारा भवन वास्तु अनुरूप है फिर भी हम सुखी नहीं ऐसा ग्रह की दशा के कारण होता है जो ग्रह देवता वास्तु पुरुष को ओंधे मुहं धरती पर लिटा सकते हैं वो आप का और हमारा क्याहाल करेंगे इसलिए वास्तु व ज्योतिष का पूर्ण ज्ञान रखने वाला ही वास्तुशास्त्री कहलाता है आप की जन्म कुंडलीमें अगर मकान बनाने का योग होगा तो ही आप मकान बना पायेगे या थोड़ा सा भी योग हो तो ग्रह व वास्तु पुरुष की पूजा कर के बनाया जा सकता है मकान बनाने से पहले भूमि को जान कर बनावे भूमिके साथ दिशा , दिशा के साथ महूर्त आदि जान कर मकान की कुंडली का निर्माणकर समय समय पर वास्तु पुरुष व ग्रह की पूजा करते रहने से आप का मकान पूर्णसुख देने वाला होगा मकान को बनाने से पहले भूमि की खरीद के समय उसकी दिशाव आकार पर भी ध्यान देना जरूरी है

अगर ज्योतिष एक पैर है तो वास्तू दुसरा दोनो को पूर्ण विधि विधान से अपने अनूरूप मकान दुकान फैक्ट्री बनाने से पहलेभूमि का चयन लेने वाले स्थान के मालिक की कुण्डली में ग्रह गोचर व दशा कीस्थिति व जगह लेने के बाद नींव पूजन व उसके महूर्त में किस ग्रह की पूजा व किसदेवी देवता का अनुष्ठान कोण से लग्न नक्षत्र में समय अनूरूप किया जाएज्योतिष का कार्य  पूरा होने के बाद वास्तू अनूरूप किन किन ग्रहों का अधिकारकिस दिशा में है  उनका सामान या देश काल पात्र की स्थिति को मध्य नजर रख कर स्थान बनाना ही सही वास्तू है। वास्तु के देवता व बाकी देवताओं के स्थान परगल्त कार्य कर भवन आदि बनाने पर दोष पैदा होने के बाद नुक्सान की शंकाअधिक रहेगी। कई लोग यह भी कह देते हैं कि हमारे ईशान कोण में टायलट पुरानी बनी हुई है। पहले तो हमें कोई नुक्सान नही हुआ तो अब क्या हो गया। अब वास्तू दोष हमें खराब करने लगा। उनकीबात सत्य है  परन्तु दोष कुन्डली में आ पडा हो कुन्डली में दशा दोष बन रहा हो। दशा तब अनूकूल थी। लेकिंन अब किसी पाप पीडि़त ग्रह की दशा आ गई हो।जो दोष अब प्रबल होते ही आप को नुक्सान हुआ। सो वास्तू व ज्योतिष दोनोको मध्य नजर रख कर कार्य करने पर ही विशेष लाभ होता है। वास्तू के अनूरूपमकान बनाने के बाद हर साल वास्तू देव की पूजा पाठ या उपाय करने चाहिए जोये अपने आप में पूर्ण रह सके। जैसे हर रोज़ खाना खाना जरूरी है, महिने 2 महिने में बालों की कटिंग करवा कर अपने आप को सुन्दर बनाना जरूरी है वैसे हीहर वर्ष अपने वास्तू व अपने ग्रहों के अनूकूल करने पर दुनिया की नजरोंमें आप स्वस्थ धनवान सुख सुविधाओं से समपन्न रह कर सुन्दर दिखने में आपकाही फायदा है।

आज के मानव की मुख्य आवश्कताऐं रोटी कपडा और मकान के साथ साथ धन मान ऐश प्रस्तीहाई सोसाइटी उच्च वाहन और बडा होने की लालसा अधिक है। इन सब भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए हर संभव कार्य करने को तैयार है। परन्तु उसका मूल आधार उसका अपना घर ही होता है। ज्योतिष और वास्तुको मध्य नजर रख कर बनाए गए भवन ये सभी प्रकार की सुख सुविधाए देते हंै। भवननिर्माण से पूर्व मजबूत आधार के लिए नींव खोदना अति अवश्यक है। विद्वानद्वारा बताए गए शुभ महुर्त में नींव खोद कर पुनः नींव भरने का कार्य प्रारंभकरना नीचक प्रतिष्ठा कहलाता है। आज की बढ़ती मंहगाई में मकान बना करफिर से उसे तोडना व बनाना कहां की समझदारी है। बने हुए मकान को वास्तु केअनुरूप अगर आप नही बना सकते तो भूमि में दबाए जाने वाले सामान जिसे हम उपायकहते हैं करके अपनी वास्तु स्मस्याओं को दूर कर लाभ ले सकते है। वास्तुशास्त्र को समझने के लिए सर्व प्रथम दिशा का ज्ञान होना आवश्यक है। प्रायःलोग प्रातः काल सुर्य उदय को देख कर पूर्व दिशा समझ लेते है। बल्कि यहधारणा गल्त है। सुर्य उदय का स्थान और समय उसके उत्रायण और दक्षिणायन मेंहोने के कारण  कभी कभी कुछ परिर्वतन होते है। दिशा का सही ज्ञान हासिलकरने के लिए अच्छी किस्म का कमपास आपके पास होना जरूरी है। वास्तु शास्त्र में दिशाओ व उपदिशाओं का विशेष महत्व बताया गया है। जैसे ग्रह नक्षत्रों का मानव जीवन पर प्रभाव पडता है वैसे ही दिशाओं का प्रभाव होता है। इन दिशाओं काज्ञान भवन बनाने वाले को जरूर होना चाहिए। इसके ज्ञान हेतु सबसे पहले दिशासूचक यानि कम्पास का होना अति आवश्यक है। जिसके माध्यम से हम अपने लेने वालेप्लाट को गहराई के साथ देख सकते हैं कि कोन सी दिशा वाला यह प्लाट है। कुलदिशाऐं दस होती हैं जिसमें आठ दिशाओं को प्रमुख माना गया है। जैसे पूर्वजिस तरफ से सुर्य उदय होता है, पूर्व-उत्तर ईशान कोन, उत्तर, उत्तर-पश्चिमवायव्य कोन, पश्चिम जिस तरफ सुर्य अस्त होता है , पश्चिम-दक्षिण नैत्रत्य कोन, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व अग्नि कोन पर सुर्य उदय होने वाली व सुर्यअस्त होने वाली दिशा सुर्य द्वारा सही न समझें कारण शास्त्र अनुसार सुर्यके उत्तरायण व दक्षिणायन में जाने से पूर्व व पश्चिम दिशाओं में कुछ अन्तरआ जाता है। इसलिए दिशा सूचक कम्सास का प्रयोग करना अति उत्तम होगा।इनमें जो दो दिशाऐं है वो मूल आकाश वपृथ्वी हैं। इन का प्रयोग भी मान्य है। मकान बनाने में दिशाओं के साथ पंच तत्वों का भी विशेष महत्व दिया गया है। जैसे वायु तत्व के लिए वायव्य कोन अग्नि तत्व के लिए अग्नि कोन जल तत्व केलिएईशान कोन पृथ्वी तत्व के नैत्रत्य कोन आकाश तत्व के लिए ब्रम्ह स्थानको माना गया है। जो वास्तू दिशा व इन पांच तत्वों को मध्य नजर न करकेमकान बनाता है। इस के फल स्वरूप उसे दैहिक भौतिक व आर्थिक कष्टो का सामना करनापड़ता है।पंच तत्व क्या है इसका दिशाओं से क्या सम्बन्ध है यह तो हम आपकोबता चुके है। वास्तव में पंच तत्व का मनुष्य व धरती से गहरा नाता क्योंहै इसका वर्णन करते है। जब ब्रम्हा ने तप कर बहुत बडे ग्रंथ का निर्माणकिया तो ब्रम्हा जी ने प्रजा के रचने की मन में इच्छा हुई जिसे हम यह कहतेहैं कि ब्रम्हा जी ने सृष्टि रची। उस समय मानस पुत्र हुए जो कि मन से रचेगए थे। तभी इनका नाम मानस पड़ा। मनुष्य के हर अंग पर अलग अलग देवी देवताओंका वास है। बुद्धि से मोह, अंधकार से क्रोध का जन्म होता है। तो इन में तीन गुण विराजमान रहते है। सातविक ,तामसिक, राजसिक इन तीनों की समान स्थिति को प्रकृति कहते है और कोई प्रकृति को प्रधान भी मानते है। इन तीनो के देवता ब्रम्हा विष्णु व शिव कहे गए है। वास्तव में इन की मुर्तिएक ही है। विकार युक्त प्रधान प्रकृति से महां तत्व हुआ। महां तत्व से मानका बढाने वाला अंहकार हुआ। उसमें पांच इन्द्रीयां हुई। यह पांचोंइन्द्रीयां बुद्धि के वशीभूत रहती है।कान, त्वचा, नेत्र, जीभ व नाक यह पांच ज्ञान इन्द्रीयां हैं और गुदा, लिंग, हाथ, पैर और वाणी यह पांच कर्मेन्द्रीयां है। शब्द, स्र्पश, रूप, रस व गंध उन पांचों ज्ञान इन्द्रीयों के विष्य हैं और मल त्यागना आन्नद होना ग्रहण करना गमन करना और बोलना यह पांचोंउन कर्मेन्द्रीयों की क्रिया हैं। इनमें ग्यारवां कर्म बुद्धिऔर गुण है। गुण से संयुक्त मन है। इन ज्ञान इन्द्रीयों के सूक्षम अवयव उसमन की मूर्ति के आश्रय होते है। इसीलिए उनको तन्मात्रा कहते है। इसी से हीसंसार की रचना करने पर जो ब्रम्हा जी का मन बना वह आकाश तत्व है। इसकीतन्मात्रा शब्द गुण होता है। आकाश सेयानि आकाश के विकार से वायु तत्व हुआ। इसका गुण स्र्पश से हांेता है। वायु तत्व की स्र्पशता से अग्नि तत्व हुआ। उस अग्नि के शब्द, स्र्पश व रूप से तीन गुण उत्पन्न हुए। अग्नि के विकार सेचार गुणों वाला जल तत्व हुआ। इसकी तन्मात्रा रस है। विशेष करके रस गुणात्मकही जल है। उस जल के रस से गंध की तन्मात्रा वाली पांच गुणों से युक्तपृथ्वी हुई। इस लिए पंच तत्व वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी और आकाश को माना गया है। जब भी मकान का निर्माण करना हो उस समय के महूर्त मेंग्रहों के गोचर को पूर्ण रूप से इन योगों के मुताबिक समय निकाल कर अच्छे लग्नों में नींव महुर्त पूर्ण विधि विधान से करने पर मकान व मकान मालिक के लिए शुभ रहेंगें। मकान दुकान फैक्ट्री के सहीपूजन विधि व विधिवत भूमि में दबाए जाने वाले सामान दिशा अनुसार कोन कोनसे कोणों का नीचा ऊँचा व समान्य होना सही कार्य शैली आदि कई कारणों काध्यान में रख कर करने पर धन मान यश व सम्पूर्ण सुख का कभी भी आभाव नही होगा।शर्त कि विधिवत कार्य कराने वाला हो, दोनो का समय भी अच्छा हो कभी भी ईंट का महूर्त ऐसे वैसे न कर गोचर में स्थित गुरू ग्रह की स्थिति को देख कर ही करें।

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