नई दिल्ली। सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1993 के आतंकवादी वारदात के लिए दोषी ठहराए गए और मौत की सजा पाए देवेंदर पाल सिंह भुल्लर को राहत देते हुए उसके मृत्युदंड को सोमवार को उम्रकैद में तब्दील कर दिया। न्यायालय ने राष्ट्रपति के पास लंबित उसकी दया याचिका के निपटारे में हुई अत्यधिक देरी और उसकी मानसिक बीमारी के आधार पर यह बदलाव किया।
भुल्लर सिजोफ्रेनिया से पीड़ित है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सतशिवम, न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा, न्यायमूर्ति एच. एल. दात्तु और न्यायमूर्ति एस. जे. मुखोपाध्याय की पीठ ने भुल्लर के मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील करते हुए न्यायालय के 21 जनवरी, 2014 के आदेश का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि दया याचिका के निपटारे में अधिक व अकारण देरी मृत्युदंड पाए कैदी के साथ अमानवीय व्यवहार है और इसलिए यह मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने का आधार है।
इससे पहले महान्यायवादी जी. ई. वाहनवती ने न्यायालय को बताया कि भुल्लर की दया याचिका के निपटारे में देरी हो रही है। दया याचिका के निपटारे में देरी की बात स्वीकार कर केंद्र ने इस बारे में निर्णय अदालत पर छो़ड दिया था। इससे पहले न्यायालय ने 12 मार्च, 2014 को केंद्र सरकार की वह याचिका खारिज कर दी थी, जिसमें 21 जनवरी, 2014 के न्यायालय के आदेश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया था।
न्यायालय ने भुल्लर की मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदलने के Rम में दिल्ली स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एलायड साइंसेज की पांच फरवरी, 2014 की रिपोर्ट को भी ध्यान में रखा, जिसका कहना है कि भुल्लर मानसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया से जूझ रहा है।
इससे पहले न्यायालय ने 31 जनवरी, 2014 को उक्त संस्थान को भुल्लर के स्वास्थ्य की जांच करने और इस आधार पर अपनी रिपोर्ट देने के लिए कहा था। न्यायालय ने भुल्लर के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदलने का आदेश उसकी पत्नी नवनीत कौर की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया।