भारत को आध्यात्म, तीर्थ स्थानों, मदिरों, तथा साधु-संतों के देश के रूप में जाना जाता है तथा भारतवर्ष के साथ जुड़ीं इन सभीविशेषताओं के कारक ग्रह बृहस्पति हैं जिन्हेंज्योतिष की साधारण भाषा में गुरू के नाम से भी जाना जाता है। भारतीय वैदिक ज्योतिष में बृहस्पति को समस्तदेवताओं तथा ग्रहों का गुरू माना जाता है तथा इसग्रह को समस्त ग्रहों में सबसे पवित्रतथा पावन मानाजाता है। गुरू मुख्य रूप से साधु-संतों, आध्यात्मिक गुरुओं तथा आध्यात्मिक रुप से विकसित व्यक्तियों, तीर्थ स्थानों तथा मंदिरों, पवित्रनदियों तथा पवित्र पानी के जल स्तोत्रों, धार्मिक साहित्य तथा पीपल के वृक्ष के कारक माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त गुरु ग्रह कोअध्यापकों, ज्योतिषियों, दार्शनिकों, वित्तिय संस्थानों में कार्यकरने वाले व्यक्तियों, लेखकों, कलाकारों तथा अन्य कई प्रकारके क्षेत्रों तथा व्यक्तियों का कारक भी मानाजाता है।
गुरू स्वभाव से नमग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें नर ग्रह माना जाता है। कर्क राशि में स्थित होकर गुरू सर्वाधिकबलशाली हो जाते हैं तथा इस राशि में स्थितगुरू को उच्च का गुरू कहा जाता है। कर्क राशि के अतिरिक्त गुरू धनु तथा मीन राशियों में स्थित होने पर भीबलशाली हो जाते हैं जो इनकी अपनी राशियांहैं। कुंडली में गुरू के बलवान होने पर तथा बुरे ग्रहों के प्रभाव से रहित होने पर जातक का शरीर आम तौर परसवस्थ तथा मजबूत होता है। गुरू के प्रबलप्रभाव वाले जातक आम तौर पर दयालु, दूसरों का ध्यान रखने वाले, धार्मिक तथा मानवीय मूल्योंको समझने वाले होते हैं। ऐसे जातक बहुत बुद्धिमान होतेहैं तथा मुश्किल से मुश्किल विषयों को भी आसानी से समझ लेने की क्षमता रखते हैं। ऐसे जातक अच्छे तथासृजनात्मक कार्य करने वाले होते हैं तथा इस कारणसमाज में इनका एक विशेष आदर होता है।
गुरू के प्रबलप्रभाव वाले जातकों की वित्तिय स्थिति मजबूत होती है तथा आम तौर पर इन्हें अपने जीवन काल में किसी गंभीर वित्तिय संकटका सामना नहीं करना पड़ता। ऐसे जातकसामान्यतया विनोदी स्वभाव के होते हैं तथा जीवन के अधिकतर क्षेत्रों में इनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता है। ऐसेजातक अपने जीवन में आने वाले कठिन समयों में भीअधिक विचलित नहीं होते तथा अपने सकारात्मक रुख के कारण इनकठिन समयों में से भी अपेक्षाकृत आसानी से निकल जाते हैं। ऐसे जातक आशावादी होते हैं तथा निराशा का आम तौर परइनके जीवन में लंबी अवधि के लिए प्रवेश नहींहोता जिसके कारण ऐसे जातक अपने जीवन के प्रत्येकपल का पूर्ण आनंद उठाने में सक्षम होते हैं। ऐसे जातकों के अपने आस-पास के लोगों के साथ मधुर संबंध होते हैं तथा आवश्यकता केसमय वे अपने प्रियजनों की हर संभव प्रकार सेसहायता करते हैं। इनके आभा मंडल से एकविशेष तेजनिकलता है जो इनके आस-पास के लोगों को इनके साथ संबंध बनाने के लिए तथा इनकी संगत में रहने के लिए प्रेरित करता है।आध्यात्मिक पथ पर भी ऐसे जातक अपेक्षाकृत शीघ्रतासे ही परिणाम प्राप्त कर लेने में सक्षम होते हैं।
गुरू का प्रबलप्रभाव जातक को विभिन्न प्रकार के पकवानों तथा व्यंजनों का रसिया बना सकता है जिसके कारण ऐसे जातक कई बार सामान्य सेअधिक खाने वाले होते हैं तथा अपनी इसी आदत केकारण ऐसे जातकों को शरीर पर अतिरिक्तचर्बी चढ़ जानेकी शिकायत भी हो जाती है। ऐसे जातकों की धार्मिक कार्यों में तथा परोपकार के कार्यों में भी रूचि होती है तथा समाज केपिछड़े वर्गों के लिए काम करने में भीइन्हें आनंद मिलता है।
गुरू मकर राशि मेंस्थित होने पर बलहीन हो जाते हैं तथा मकर राशि में स्थित गुरू को नीच का गुरू भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्तगुरू किसी कुंडली विशेष में अपनी स्थिति केकारण अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव के कारण भी बलहीन हो सकते हैं। गुरू के बलहीन होने की स्थिति में जातकअग्नाशय से संबंधित बिमारियों जैसे मधुमेह, पित्ताशय से संबधित बिमारियों से, श्रवण संबंधित बीमारीयों से तथापीलिया जैसी बिमारियों से पीडि़त हो सकता है। इसके अतिरिक्त कुंडली में गुरू के बलहीन होने से जातक को शरीरकी चर्बी को नियंत्रित करने में भी मुश्किल होसकती है जिसके कारण वह बहुत मोटा या बहुत पतलाहो सकता है। किसी कुंडली में गुरू पर अशुभ राहु का प्रबल प्रभाव कुंडली धारक को आध्यात्मिकता तथा धार्मिक कार्यों से पूर्णरूप से विमुख कर सकता है अथवा ऐसा जातक धर्मतथा आध्यात्मिकता के नाम पर लोगों को ठगने वालाकपटी भी हो सकता है। इसी प्रकार विभिन्न प्रकार के अशुभ ग्रहों का किसी कुंडली में गुरू पर प्रबल प्रभाव कुंडली धारक के लिएविभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकताहै।