दक्षिण-पूर्वी ईरान स्थित छाबर बंदरगाह आेमान की खाड़ी से सटा हुआ है। यह एकमात्र ईरानी बंदरगाह है जिससे हिंद महासागर में पहुंचा जा सकता है। भारत ने पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान और मध्य एशिया में अपनी पहुंच बनाने के लिए 1990 में इस बंदरगाह को अांशिक तौर पर तैयार किया था। लेकिन इसके पूर्ण विकास को भारत ने ईरान से समझौता किया है।
छाबर बंदरगाह का इतिहास
छाबर बंदरगाह ईरान के सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत के दक्षिण में स्थित है। इस बंदरगाह का लंबे से व्यापार और नौपरिवहन के लिए उपयोग किया जाता रहा है। इसकी भौगोलिक संरचना के कारण महासागर के साथ-साथ आेमान सागर और फारस की खाड़ी में पहुंचने में आसानी होती है। छाबर बंदरगाह को विकसित करने के लिए ईरान ने 1973 में निविदा दिया था लेकिन वित्तीय कठिनाइयों की वजह से काम पूरा नहीं हो सका। ईरान-इराक के बीच युद्ध के दौरान ईरान सरकार ने महसूस किया कि अद्वितीय विशेषताओं के कारण छाबर का उपयोग आयात-निर्यात के लिए बेहतर तरीके से किया जा सकता है। इसके बाद 1981 में फिर एक प्रयास हुआ लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ पाया। आखिरकार, 1990 में भारत रुचि की वजह से इसका आंशिक विकास संभव हो सका।
भारत के लिए क्यों है महत्वपूर्ण
छाबर बंदरगाह भारत के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है जितना चीन के लिए पाकिस्तान का ग्वादर बंदरगाह। इसके विकास से भारत को पाकिस्तान को बाइपास कर अफगानिस्तान पहुंचने का समुद्री मार्ग उपलब्ध होगा। महाराष्ट्र और गुजरात तट से छाबर बंदरगाह सीधा जुड़ जाएगा। यह रणनीतिक दृष्टि से इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके जरिये मध्य एशिया और खाड़ी देश (ओमान, संयुक्त अरब अमीरात, कतर, बहरीन आदि) पहुंचने में परिवहन लागत कम आएगी और समय की भी बचत होगी। यहां से कच्चा तेल और यूरिया के आयात में भारत को काफी अासानी होगी।
पाकिस्तान द्वारा अपने ग्वादर बंदरगाह को चीन को सौंपे जाने के बाद भारत की सामरिक चिंता काफी बढ़ गई थी। अरब सागर में चीन की बढ़ती दखल के काट के लिए भारत ने छाबर बंदरगाह की परियोजना को अपने हाथ में लिया है।
भारत और ईरान में समझौता
भारत छाबर बंदरगाह में दो बर्थ का पट्टा 10 साल के लिए लेगा। पोर्ट का विकास स्पेशल पर्पज व्हीकल के जरिये किया जाएगा, जिसमें 8.5 करोड़ डॉलर का निवेश किया जाएगा। इसके जरिये बर्थ को कंटेनर टर्मिनल और मल्टी पर्पज कार्गो टर्मिनल में बदला जाएगा।